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भारत: नफरती भाषणों से भरा मोदी का चुनावी अभियान

प्रधानमंत्री, सत्तारूढ़ पार्टी का निशाना बने मुसलमान और दूसरे कमजोर समूह

राष्ट्रीय आम चुनाव में मतदान से पहले हैदराबाद में चुनावी सभा को संबोधित करते भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 10 मई, 2024.  © 2024 महेश कुमार ए./एपी फोटो
  • भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2024 चुनावी अभियान में अक्सर नफरत भरे भाषणों का इस्तेमाल किया गया जिसमे मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ भेदभाव, दुश्मनी और हिंसा भड़काया गया.
  • मोदी प्रशासन के तहत अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ हमलों और भेदभाव के एक दशक के दौरान भड़काऊ भाषणों के कारण मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य लोगों के उत्पीड़न की घटना आम बात हो गई है.
  • मोदी की नई सरकार को चाहिए कि अपनी भेदभावपूर्ण नीतियां वापस ले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ हिंसा पर तुरंत कार्रवाई करे और प्रभावित लोगों की खातिर न्याय सुनिश्चित करे.

(न्यूयॉर्क) - ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज कहा कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 2024 के चुनावी अभियान में मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ अक्सर नफ़रत भरे भाषणों का इस्तेमाल किया गया. मोदी की हिंदू बहुसंख्यकवादी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेताओं ने लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए, जिसका कार्यकाल 9 जून से शुरू हुआ, अपने चुनाव अभियान के दौरान हाशिए पर पड़े समूहों के खिलाफ़ अक्सर भेदभावपूर्ण  तथा शत्रुता और हिंसा भड़काने वाले बयान दिए.

कई भाजपा राज्य सरकारों ने बिना किसी समुचित प्रक्रिया के मुसलमानों के घरों, कारोबार और पूजा स्थलों को ध्वस्त किया है और अन्य गैरकानूनी कार्रवाइयों को अंजाम दिया है. ये सब चुनाव के समय से ही जारी हैं. सांप्रदायिक झड़पों के बाद या असहमति जताने पर अक्सर ये विध्वंसक कार्रवाइयां साफ़ तौर पर मुस्लिम समुदाय को सामूहिक दंड देने के लिए की जाती हैं और भाजपा नेता इसे “बुलडोजर न्याय” बताते हैं. धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा भी जारी रही है. देश भर में हुए ऐसे कम-से-कम 28 हमलों में 12 मुस्लिम पुरुष और एक ईसाई महिला मारे गए हैं.

ह्यूमन राइट्स वॉच की एशिया निदेशक एलेन पियर्सन ने कहा, “भारतीय प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा नेताओं ने मुसलमानों और दूसरे अल्पसंख्यक समूहों के खिलाफ अपने चुनावी भाषणों में बिल्कुल सफ़ेद झूठ बोला. मोदी प्रशासन के तहत अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ हमलों और भेदभाव के एक दशक के दौरान, इन भड़काऊ भाषणों ने मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य लोगों के उत्पीड़न को सामान्य घटना बना दिया है.”

ह्यूमन राइट्स वॉच ने 16 मार्च को चुनाव आचार संहिता लागू होने के बाद मोदी के सभी 173 चुनावी भाषणों का गहन विश्लेषण किया. आचार संहिता “वोट हासिल करने के लिए सांप्रदायिक भावनाएं” भड़काने पर रोक लगाती है. कम-से-कम 110 भाषणों में, मोदी ने मुसलमानों के प्रति पूर्वाग्रह और नफरत से भरी टिप्पणियां कीं. प्रतीत होता है इनका मकसद राजनीतिक विपक्ष, जिसे वह केवल मुस्लिम अधिकारों को बढ़ावा देने वाला बताते हैं, को कमजोर करना तथा गलत जानकारी के आधार पर बहुसंख्यक हिंदू समुदाय में डर पैदा करना था.

मोदी ने भारत के लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और विविधता मानकों को इंगित करते हुए मुस्लिम विरोधी पूर्वाग्रह के आरोपों को खारिज किया है. पत्रकारों को दिए साक्षात्कार में, उन्होंने अपनी पार्टी और इससे संबद्ध समूहों के बारे में कहा कि, “हम मुसलमान के विरोधी नहीं हैं. हमारा यह काम ही नहीं है.” अभियान के दौरान मुस्लिम विरोधी भाषणों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने जवाब दिया, “मैं जिस दिन हिंदू-मुसलमान करूंगा न, उस दिन मैं सार्वजनिक जीवन में रहने योग्य नहीं रहूंगा. मैं हिंदू-मुसलमान नहीं करूंगा. यह मेरा संकल्प है.”

हालांकि, चुनाव अभियान के दौरान, मोदी ने झूठे दावे कर हिंदुओं के बीच लगातार डर पैदा किया. उन्होंने दावा किया कि अगर विपक्षी दल सत्ता में आए तो मुसलमानों की वजह से हिंदुओं की आस्था, उनके पूजा स्थल, उनकी जमीन-जायदाद और बहन-बेटियों की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी.

उन्होंने बार-बार मुसलमानों को “घुसपैठिया” बताया और दावा किया कि अन्य समुदायों के मुकाबले मुसलमानों के “ज्यादा बच्चे” होते हैं.

झारखंड के कोडरमा में 14 मई के अपने भाषण में मोदी ने कहा, “हमारे आराध्यों की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं” और यह भी कहा कि “इन घुसपैठियों ने राज्य में हमारी बहनों-बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाला हुआ है.”

17 मई को उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में अपने भाषण में उन्होंने झूठा दावा किया कि राजनीतिक विपक्ष अयोध्या में बनाए गए नए राम मंदिर को नुकसान पहुंचाएगा. यह मंदिर विवादस्पद रूप से अयोध्या में ऐतिहासिक बाबरी मस्जिद को ध्वस्त कर बनाया गया है. उन्होंने कहा कि “सपा-कांग्रेस वाले सरकार में आए तो राम लल्ला को फिर से टेंट में भेजेंगे और मंदिर पर बुलडोजर चलवा देंगे.”

7 मई को मध्य प्रदेश के धार में दिए गए भाषण में उन्होंने फिर झूठ बोला, “कांग्रेस का इरादा खेलों में भी अल्पसंख्यकों को प्राथमिकता देने का है. यानि क्रिकेट टीम में कौन रहेगा, कौन नहीं रहेगा, ये कांग्रेस अब धर्म के आधार पर तय करेगी.”

2014 में मोदी की भाजपा सरकार के सत्तासीन होने के बाद से, इसकी भेदभावपूर्ण नीतियों और भाजपा नेताओं के मुस्लिम विरोधी भाषणों ने हिंदू राष्ट्रवादी हिंसा भड़कायी है. सरकारी तंत्र इस हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ पर्याप्त कार्रवाई करने में असफल रहा है. नतीजतन, एक ऐसा माहौल पैदा हुआ जिसमें इन लोगों में किसी चीज का खौफ नहीं है, ऐसे में उत्पीड़न की घटनाओं में इजाफा हुआ है. साथ ही, सरकारी तंत्र ने अक्सर हिंसा पीड़ितों के खिलाफ कार्रवाई की है और राजनीतिक रूप से प्रेरित कार्रवाई के जरिए सरकार के आलोचकों को खामोश करने की कोशिश की है.

भारत नागरिक और राजनीतिक अधिकारों पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते का पक्षकार देश है. यह समझौता “भेदभाव, शत्रुता या हिंसा को बढ़ावा देने वाली राष्ट्रीय, नस्लीय या धार्मिक आधार पर की जाने वाली नफरत की हिमायत करने पर रोक” लगाता है. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकारी अधिकारियों और अन्य लोगों, जो वास्तविक सरकारी शक्तियों का प्रयोग करते हैं, का यह फर्ज है कि वे किसी भी व्यक्ति या सामाजिक समूह के प्रति भेदभाव, शत्रुता या हिंसा की वकालत करने वाली भाषा का इस्तेमाल न करें. इसके विपरीत, सरकारी पदों पर आसीन व्यक्तियों को चाहिए कि दूसरे लोगों को भेदभावपूर्ण आचरण में शिरकत करने से रोकने हेतु ठोस प्रयास करें.

मोदी सरकार की कार्रवाइयों ने अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार कानून के तहत भारत के दायित्वों का उल्लंघन किया है. ये दायित्व नस्ल, नृजातीय या धर्म के आधार पर भेदभाव करने पर रोक लगाते हैं और इसके तहत यह अपेक्षा की जाती है कि सरकार सभी के लिए कानून का एकसमान संरक्षण सुनिश्चित करे. ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि सरकार इसके लिए भी दायित्वों से बंधी हुई है कि वह धार्मिक और दूसरी अल्पसंख्यक आबादी की रक्षा करे और इनके खिलाफ भेदभाव एवं हिंसा के लिए जिम्मेदार लोगों पर पूरी तौर पर और निष्पक्ष रूप से कार्रवाई करे.

पियर्सन ने कहा, “भारत सरकार के बहुलता और ‘लोकतंत्र की जननी’ होने के दावे उसकी उत्पीड़नकारी अल्पसंख्यक विरोधी कार्रवाइयों के सामने खोखले साबित होते हैं. मोदी की नई सरकार को चाहिए कि अपनी भेदभावपूर्ण नीतियां वापस ले, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा पर कार्रवाई करे और प्रभावित लोगों की खातिर न्याय सुनिश्चित करे.”

 

भाजपा के नफरत भरे भाषण और इससे निपटने में चुनाव आयोग की नाकामयाबी 

प्रधानमंत्री मोदी ने बार-बार आरोप लगाया कि विपक्षी दल “सनातन धर्म को समाप्त करने की बात करते हैं.” 2 मई को गुजरात के जूनागढ़ में उन्होंने कहा:

कांग्रेस पार्टी यह चुनाव लोकतंत्र के लिए नहीं लड़ रही हैकांग्रेस यह चुनाव भगवान श्री राम के खिलाफ लड़ रही है.... कोई मुझे बताए कि अगर भगवान राम हार गए तो कौन जीतेगा?.... इन्हीं विचारों के कारण मुगलों ने 500 साल पहले राम मंदिर को तोड़ दिया था. और इन्हीं विचारों के साथ हमारे सोमनाथ मंदिर को भी तोड़ दिया गया.

उन्होंने 10 मई को तेलंगाना के महबूबनगर के एक चुनावी भाषण में कहा: “हिंदुओं को अपने ही देश में सेकेंड क्लास सिटिजन बनाना चाहती है कांग्रेस. क्या इसलिए ही ये लोग वोट जिहाद की बात कर रहे हैं?”

मोदी ने झूठा दावा किया कि विपक्षी दलों की यह योजना है कि दलित, आदिवासी और ओबीसी  जैसे ऐतिहासिक रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों को संविधान द्वारा दिए गए गारंटीशुदा लाभों को छीनकर मुसलमानों को दे दिया जाए. उन्होंने बिना किसी आधार के यह भी दावा किया कि अगर कांग्रेस सत्ता में आई तो वह अन्य समुदायों की धन-संपत्ति छीनकर मुसलमानों में बांट देगी. मध्य प्रदेश के धार में 7 मई को दिए भाषण में उन्होंने कहा, “कांग्रेस की चली तो कांग्रेस कहेगी कि भारत में जीने का पहला हक भी उसके वोटबैंक को है.... अपने घोषणापत्र में कांग्रेस ने लिखा है, कांग्रेस सरकारी टेंडर में भी अल्पसंख्यकों को हिस्सेदारी सुनिश्चित करेंगे.”

मोदी ने अक्सर घुमा फिराकर यह कहा कि मुसलमानों से देश में मां-बहनों की सुरक्षा को खतरा है. उन्होंने दावा किया कि कांग्रेस और विपक्षी दलों के हित पाकिस्तान और “आतंकवादियों” के साथ जुड़े हुए हैं.

5 मई को उत्तर प्रदेश के धौरहरा में मोदी ने कहा कि विपक्षी दलों ने देश की जांच एजेंसियों का कामकाज बाधित किया और उन्हें आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने की इज़ाज़त नहीं दी: “इतना कुछ होता था आखिर किसके लिए. इसका एक ही जवाब है तुष्टिकरण के लिए, वोट बैंक के लिए.” 14 मई को विपक्षी पार्टी द्वारा शासित राज्य, झारखंड के कोडरमा में उन्होंने कहा

झारखंड में आज अपनी आस्था का पालन करना मुश्किल हो गया है. हमारे आराध्यों की मूर्तियां तोड़ी जा रही हैं. जिहादी मानसिकता वाले घुसपैठिए झुंड बनाकर हमला कर रहे हैं और झारखंड सरकार आंखें मूंदकर बैठी है, पीछे से समर्थन कर रही है. इन घुसपैठियों ने राज्य में हमारी बहनों-बेटियों की सुरक्षा को खतरे में डाला हुआ है.

28 मई को झारखंड के दुमका में उन्होंने कहा:

कई इलाकों में आज आदिवासियों की संख्या तेजी से कम हो रही है और घुसपैठियों की संख्या बढ़ रही है. आदिवासियों की जमीन घुसपैठिए कब्जा कर रहे हैं कि नहीं कर रहे? साथियों, हमारी आदिवासी बेटियां घुसपैठियों के निशाने पर आई हैं कि नहीं आई हैं? बेटियों की सुरक्षा खतरे में पड़ी है कि नहीं पड़ी है? बेटियों का जीवन खतरे में है कि नहीं है, 50-50 टुकड़े करके बेटियों की हत्या हो रही है, किसी आदिवासी बेटी को जिंदा जला दिया जाता है, किसी आदिवासी बेटी की जुबान खींच ली जाती है, आदिवासी बेटियों को निशाना बनाने वाले ये कौन लोग हैं?

गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ, असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा और पूर्व सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर सहित कई दूसरे भाजपा नेताओं ने अपने भाषणों में मुसलमानों को हिंदुओं का दुश्मन बताया, हिन्दुओं में नफ़रत और असुरक्षा की भावना पैदा की.

भाजपा ने चुनाव अभियान के दौरान मुसलमानों को बदनाम करने और गलत सूचना फैलाने वाले एनिमेटेड वीडियो भी प्रचारित-प्रसारित किए. 30 अप्रैल को भाजपा के आधिकारिक इंस्टाग्राम अकाउंट पर एक वीडियो पोस्ट किया गया, जिसे हटाए जाने से पहले 16 लाख बार देखा जा चुका था. वीडियो में दावा किया गया था कि कांग्रेस पार्टी उस समुदाय के लोगों को ताकत दे रही है जिन्होंने भारत में घुसपैठ की और यहां की धन-सम्पदा को लूटा-खसोटा: “कांग्रेस पार्टी का घोषणापत्र कुछ और नहीं बल्कि मुस्लिम लीग की विचारधारा का छद्म रूप है. यदि आप गैर-मुस्लिम हैं, तो कांग्रेस आपकी संपत्ति छीन लेगी और इसे मुसलमानों में बांट देगी. नरेंद्र मोदी इस नापाक योजना के बारे में जानते हैं. केवल उनके पास इसे रोकने की ताकत है.”

4 मई को कर्नाटक भाजपा के आधिकारिक अकाउंट पर एक और मुस्लिम विरोधी एनिमेटेड वीडियो पोस्ट किया गया. इसे भी अनेक उपयोगकर्ताओं की इस शिकायत के बाद हटाया गया कि यह वीडियो नफरती भाषणों से संबंधित प्लेटफ़ॉर्म की नीति का उल्लंघन करता है. यह वीडियो एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर भी पोस्ट किया गया था और इससे संबंधित व्यापक शिकायतें मिलने के बाद, 7 मई को चुनाव आयोग ने आखिरकार वीडियो हटाने के लिए एक्स को चिट्ठी लिखी.

21 अप्रैल को राजस्थान के बांसवाड़ा में मोदी के भाषण के बाद, हज़ारों मतदाताओं ने चुनाव आयोग को पत्र लिखा. इसमें यह मांग की गई कि आयोग प्रधानमंत्री द्वारा “मुसलमानों के खिलाफ हिंदुओं में नफरत फैलाकर” आचार संहिता का उल्लंघन करने के लिए उनकी कड़ी निंदा करे. आम मतदाताओं और कई विपक्षी नेताओं ने भी मोदी और भाजपा के अन्य शीर्ष नेताओं के भाषणों के बारे में लिखित शिकायत की.

ह्यूमन राइट्स वॉच ने कहा कि तब भी चुनाव आयोग ने इन उल्लंघनों पर पर्याप्त कार्रवाई नहीं की. यह जानने के बाद भी कि मोदी और अन्य भाजपा नेताओं ने दिशानिर्देशों का उल्लंघन किया है, चुनाव आयोग ने केवल भाजपा अध्यक्ष के कार्यालय को बगैर प्रधानमंत्री का नाम लिए पत्र लिखा. इस पत्र में आयोग ने कहा कि भाजपा और उसके “स्टार प्रचारक” धार्मिक या सांप्रदायिक आधार पर भाषण से दूर रहें. इन निर्देशों का मोदी पर कोई असर नहीं हुआ, वह पूरे चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषण में नफरत की आग उगलते रहे.

चुनाव आयोग ने पक्षपात के आरोपों का बचाव करते हुए कहा, “भारत बहुत बड़ा देश है. ऐसे में हमने सोच-समझ कर दोनों पार्टियों [भाजपा और कांग्रेस] के शीर्ष नेताओं पर कोई कार्रवाई नहीं करने का फैसला किया. हमने दोनों पार्टी के अध्यक्षों को एक जैसे पत्र भेजे.” चुनाव आयोग ने कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष के कार्यालय को भी लगभग ऐसा ही एक पत्र भेजा.

सरकारी तंत्र चुनाव के बाद से मुसलमानों को निशाना बना रहा है 

उत्तर प्रदेश के भाजपाई मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने 30 मई को हिमाचल प्रदेश में एक चुनावी भाषण में यह झूठा दावा किया कि विपक्षी कांग्रेस पार्टी 17वीं सदी के मुगल बादशाह औरंगजेब से प्रेरित होकर देश में शरिया या इस्लामी कानून लागू करना चाहती है. उन्होंने चेतावनी दी कि जो लोग औरंगजेब के रास्ते पर चलेंगे, “यह सामने बुलडोजर उसी के लिए खड़े हैं. उसको उसी ढंग से दफ़्न करने का काम करेंगे.”

15 जून को, मध्य प्रदेश में सरकारी तंत्र ने आदिवासी बहुल मंडला जिले में मुसलमानों के 11 मकानों को उचित प्रक्रिया का पालन किए बगैर ढाह दिया. उन्होंने कहा कि इन मुसलमानों के यहां फ्रिज में गोमांस और उनके घरों में जानवरों की खाल और कंकाल के हिस्से मिले थे. अधिकारियों ने यह कहते हुए इस कार्रवाई को उचित ठहराया कि ये मकान सरकारी जमीन पर गैरकानूनी रूप से बने हुए थे. हालांकि खबरों के मुताबिक तोड़े गए मकानों के पड़ोस में स्थित 16 ऐसे दूसरे मकानों को नहीं ढाहा गया जो अधिकारियों के अनुसार गैरकानूनी तो थे, लेकिन जहां से अफवाह के मुताबिक गोमांस नहीं मिला था. एक पुलिस अधिकारी ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “जिन घरों में गोमांस मिला था, हमने उन्हें तोड़ दिया बाकी पर फिलहाल कार्रवाई नहीं की... हम पशु तस्करों के खिलाफ कार्रवाई कर रहे थे.”

25 जून को, उत्तर पश्चिमी दिल्ली के मंगोलपुरी में प्रशासन द्वारा एक मस्जिद के कुछ हिस्सों को अवैध बताते हुए गिराए जाने के बाद विरोध प्रदर्शन शुरू हुए. यह कार्रवाई दिल्ली के बवाना इलाके में एक और ऐतिहासिक मस्जिद, जन्नतुल फिरदौस को प्रशासन द्वारा ढहाने के ठीक पांच दिन बाद की गई. मस्जिद की देखभाल करने वालों ने आरोप लगाया कि प्रशासन ने बिना किसी पूर्व सूचना या चेतावनी के इसे ध्वस्त कर दिया.

जुलाई में, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की भाजपा सरकारों ने निर्देश जारी किए कि कांवड़ यात्रा के मार्ग पर स्थित खान-पान सामग्री बेचने वाले तमाम दुकानों और स्टालों को अपने मालिकों और कर्मचारियों के नाम और परिचय प्रदर्शित करने होंगे. राज्य सरकारों ने दावा किया कि ऐसा निर्देश यह सुनिश्चित करने के लिए जारी किया गया ताकि तीर्थयात्रा के दौरान भक्त अपनी “धार्मिक भावनाओं” का ध्यान रखते हुए खाद्य सामग्रियों के मामले में “सूचित विकल्प” चुन सकें.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी. अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हालाँकि अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने की अनुमति है कि तीर्थयात्रियों को “उनकी पसंद का शाकाहारी भोजन” परोसा जाए, लेकिन मालिकों को “अपने और अपने कर्मचारियों के नाम और पते प्रदर्शित करने के लिए बाध्य करने” से यह मकसद हासिल करने में शायद ही कोई मदद मिले. अदालत ने कहा कि यदि निर्देश को लागू करने की अनुमति दी जाती है, तो “यह भारतीय गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का अतिक्रमण होगा.”

धार्मिक और दूसरे अल्पसंख्यकों पर ताजा हमले

चुनाव प्रचार के समय से मुसलमानों और दूसरे धार्मिक अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंदू भीड़ और अन्य लोगों के हमले जारी हैं.

7 जून को छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले में हमलावरों ने मवेशी ले जा रहे तीन मुस्लिम युवकों- सद्दाम क़ुरैशी, 23, चांद मिया खान, 23, और गुड्डु खान, 35, की हत्या कर दी. परिजनों का आरोप है कि “गौरक्षा” का दावा करने वाले हिन्दू स्वयंभू रक्षकों ने उन्हें मारकर एक पुल से नीचे फेंक दिया. पुलिस अभियोग में कहा गया कि जिस ट्रक पर मुस्लिम युवक सवार थे, उसका तीन कारों में सवार लोगों ने 33 मील तक पीछा किया. इस दौरान उन्होंने ट्रक पर कीलें और पत्थर फेंके जिससे ट्रक का एक टायर क्षतिग्रस्त हो गया और यह पुल पर रुक गया. तीनों मुस्लिम युवक डर कर पुल से कूद गये जिससे उनकी मौत हो गई.

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ जिले में 18 जून को स्थानीय हिंदुओं ने 35-वर्षीय मोहम्मद फ़रीद की कथित तौर पर पीट-पीटकर हत्या कर दी. पुलिस ने बताया कि हिंदू हमलावरों को यह शक था कि फ़रीद ने एक हिंदू व्यापारी के घर चोरी की है. पुलिस द्वारा हत्या के आरोप में छह लोगों को गिरफ्तार करने के बाद, एक भाजपा विधायक ने स्थानीय हिंदू समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर आरोपियों का बचाव किया. इन सबने उनकी रिहाई की मांग की और पुलिस पर मामले में नामजद दूसरे लोगों के खिलाफ कार्रवाई न करने का दबाव बनाया. हत्या के ग्यारह दिन बाद, पुलिस ने मृतक, उसके भाई और पांच अन्य के खिलाफ डकैती और एक महिला का यौन उत्पीड़न करने का मामला दर्ज किया.

22 जून को गुजरात के चिखोदरा गांव में स्थानीय हिंदू भीड़ ने क्रिकेट मैच देखने गए 30-वर्षीय सलमान वोहराकी कथित तौर पर पीटकर हत्या कर दी. स्थानीय कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि गांव का मुखिया, स्थानीय भाजपा विधायक का बेटा और उसका चचेरा भाई हत्या में शामिल थे. कार्यकर्ताओं ने यह मांग की है कि राजनीतिक हस्तक्षेप रोकने हेतु मामले की सुनवाई दूसरी जगह की जाए.

जून में बक़रीद के दौरान, हिंदू भीड़ ने मुसलमानों को हैरान-परेशान किया और उन पर हमले किए. हमले की एक वजह उनका यह संदेह था कि मुसलमानों ने मवेशियों का क़त्ल किया है. 15 जून को तेलंगाना के मेडक में भीड़ ने एक मदरसे में मौजूद लोगों पर यह आरोप लगाते हुए हमला किया कि उन्होंने ईद के जश्न के दौरान जानवरों की कुर्बानी दी है.

16 जून को एक “गौरक्षा” समूह के सदस्यों ने ओडिशा के खोरधा शहर में एक मुस्लिम घर में कथित तौर पर घुसकर सारा मांस और उनका फ्रिज जब्त कर लिया. उन्हें यह संदेह था कि फ्रिज में गोमांस रखा हुआ है. 18 जून को, हरियाणा के फरीदाबाद में स्वयंभू रक्षक समूहों ने एक चिकन शॉप के मुस्लिम मालिक और वहां मौजूद दो हिंदू ग्राहकों पर कथित तौर पर हमला किया.

19 जून को उत्तर प्रदेश के पकरी गांव में हिंदू भीड़ ने मांस ले जा रहे एक ऑटो रिक्शा चालक पर हमला कर दिया. भीड़ का कहना था कि उस सड़क पर मांस की ढुलाई नहीं की जा सकती. उसी दिन, हिमाचल प्रदेश में पुलिस की आंखों के सामने भीड़ ने एक मुस्लिम की दुकान पर हमला कर दिया. यह हमला इसलिए किया गया कि मुस्लिम दुकानदार ने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर कथित तौर पर भैंस की बलि की तस्वीर साझा की थी.

इस दौरान, देश के कई हिस्सों में ईसाइयोंदलितों और सिखों पर हुए हमलों में हिंदू समुदाय के लोग संलिप्त थे.

भाजपा के हिंदू राष्ट्रवादी नफरत भरे भाषणों का एक दशक

2014 में मोदी सरकार के सत्तासीन होने के बाद भारत में मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषणों की बाढ़ आ गई है.

2014 के राष्ट्रीय चुनाव अभियान के दौरान मोदी ने बार-बार गौरक्षा का आह्वान किया.  पिछली सरकार की “पिंक रेवोलुशन” या “गुलाबी क्रांति” का डर दिखाकर उन्होंने दावा किया कि मांस निर्यात के लिए गायों और अन्य मवेशियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया गया. सत्ता में आने के बाद, कई भाजपा नेताओं ने ऐसी बयानबाजी की जिससे गोमांस के उपभोग और इससे जुड़े लोगों के खिलाफ हिंसक अभियान को गति मिली.

इसकी वजह से देश भर में स्व-घोषित “गौरक्षा” समूह उभरने लगे. इसमें अनेक समूहों का दावा है कि वे भाजपा से संबद्ध आक्रामक हिंदू समूहों से जुड़े हुए हैं. मई 2015 और दिसंबर 2018 के बीच, 12 राज्यों में कम-से-कम 44 लोग मारे गए जिनमें 36 मुसलमान थे. इसी दौरान, 20 राज्यों में 100 से अधिक घटनाओं में लगभग 280 लोग घायल भी हुए. हमले अब भी जारी हैं और इनमें और लोग मारे गए हैं.

दिसंबर 2019 में सरकार के भेदभावपूर्ण नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ पूरे देश में व्यापक शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन शुरू हुए थे. इसके बाद कुछ भाजपा नेताओं ने प्रदर्शनकारियों का उपहास किया या इससे खतरनाक यह कि उन्हें राष्ट्र-विरोधी और पाकिस्तान समर्थक करार दिया. उसके कुछ दूसरे नेताओं ने नारा लगाया “देश के ग़द्दारों को, गोली मारो सालों को” जिससे हिंसा भड़की. सरकार समर्थकों ने दो प्रदर्शन स्थलों पर आंदोलनकारियों के खिलाफ बंदूकें लहराई.

30 जनवरी, 2020 को एक 17-वर्षीय लड़के ने दिल्ली स्थित जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के बाहर प्रदर्शनकारियों को पहले बंदूक की नोक पर धमकाया और फिर पुलिस की मौजूदगी में गोलीबारी की, जिसमें एक छात्र घायल हो गया. दो दिन बाद, दिल्ली के शाहीन बाग स्थित प्रदर्शनस्थल के पास एक व्यक्ति ने हवा में दो गोलियां दागीं.

2014 से, भाजपा ने “लव जिहाद” का आरोप लगाकर मुसलमानों को बदनाम किया है. यह एक काल्पनिक आरोप है, जिसमें बगैर किसी आधार के यह दावा किया जाता है कि मुस्लिम पुरुष हिंदू महिलाओं को बहला-फुसला कर उनसे शादी करते हैं ताकि उन्हें इस्लाम कबूल कराया जा सके. इसके आधार पर कई राज्यों ने धर्मांतरण विरोधी कानून पारित किए हैं, जिसका इस्तेमाल हिंदू महिलाओं से शादी करने वाले मुस्लिम पुरुषों के खिलाफ किया जाता है. हिंदू राष्ट्रवादी समूहों ने अंतरधार्मिक रिश्तों में शामिल मुस्लिम पुरुषों को पीटा है, उन्हें हैरान-परेशान किया है और उनके खिलाफ इन कानूनों के तहत मामले दर्ज किए हैं.

भाजपा और इससे संबद्ध हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के नेताओं ने ऐसे बयान दिए हैं, जिनके कारण पिछले दशक में भीड़ ने चर्चों पर अनेक हमले किए हैं. बहुतेरे मामलों में, पादरियों को पीटा गया है, उन्हें धार्मिक सभाएं करने से रोका गया है और धर्मांतरण विरोधी कानूनों के तहत उन पर मुकदमे दर्ज हुए हैं. साथ ही, चर्चों में तोड़फोड़ भी की गई है.

नवंबर 2020 में विभिन्न धर्मों के लाखों किसानों ने सरकार के नए कृषि कानूनों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शुरू किया. इस घटना के बाद, वरिष्ठ भाजपा नेताओं, सोशल मीडिया पर उनके समर्थकों, और सरकार परस्त मीडिया ने सिखों को लांछित करना शुरू कर दिया. उन्होंने सिखों पर यह आरोप लगाया कि वे खालिस्तानी एजेंडा पर चल रहे हैं. यहां खालिस्तानी एजेंडा का सन्दर्भ 1980 और 1990 के दशक के दौरान पंजाब के सिख अलगाववादी आंदोलन से था. 8 फरवरी, 2021 को मोदी ने संसद में विभिन्न शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शनों में भाग लेने वाले लोगों को “परजीवी” बताया.

10 जून को हरियाणा के कैथल जिले में दो लोगों ने एक सिख व्यक्ति को खालिस्तानी बताते हुए उस पर हमला किया. पंजाब के विपक्षी नेताओं ने कहा कि भाजपा नेताओं के सिख विरोधी बयानों के कारण यह हमला हुआ. पंजाब के पूर्व उपमुख्यमंत्री ने एक्स पर लिखा, “यह साफ़ तौर पर नफरत की राजनीति और विभिन्न समूहों के ध्रुवीकरण का नतीज़ा है जिससे पिछले एक दशक से देश आक्रांत है.”

2017 के बाद, रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को “आतंकवादी” बताने वाले हिंदू राष्ट्रवादी समूहों के रोहिंग्या विरोधी अभियानों से संगठित हिंसा भड़की है. जम्मू और दिल्ली में रोहिंग्याओं के घरों में आगजनी ऐसी ही हिंसा थी. 2017 में भारत सरकार ने रोहिंग्या शरणार्थियों को “राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए ख़तरा” बताया.

भाजपा के गृह राज्य मंत्री ने कहा, “हमारे लिए वे सभी अवैध अप्रवासी हैं. उनके यहां रहने का कोई आधार नहीं है. जो भी अवैध प्रवासी है, उसे देश से बाहर निकाला जाएगा.” 2018 में, दिल्ली में एक रोहिंग्या बस्ती में आगलगी के बाद, जिसमें कम-से-कम 50 घर जलकर राख हो गए, भाजपा युवा इकाई के एक नेता ने ट्विटर पर इस कार्रवाई की तारीफ में कहा, “शाबाश मेरे हीरो ... हाँ, हमने रोहिंग्या आतंकवादियों के घर जला दिए.”

2020 में कोविड-19 महामारी शुरु होने पर, भारत के सरकारी तंत्र ने मुस्लिम विरोधी नफरत भरे भाषणों और हिंसा को बढ़ावा देने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. सरकारी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से यह बताया कि उन्हें दिल्ली की एक सामूहिक धार्मिक सभा में भाग लेने वाले मुसलमानों में बड़ी तादाद में कोरोना वायरस के मामले मिले हैं. इसके बाद कुछ भाजपा नेताओं ने इस सभा के आयोजन को “तालिबानी अपराध” करार दिया और इसे “कोरोना आतंकवाद” बताया. वहीं मुख्यधारा के कुछ मीडिया संस्थानों ने इसके लिए “कोरोना जिहाद” शब्द का इस्तेमाल किया और इस शब्द से बना हैशटैग सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.

जल्द ही, सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप मुसलमानों के सामाजिक और आर्थिक बहिष्कार के आह्वान से पट गए. मुसलमानों पर जानबूझकर वायरस फैलाने का झूठा आरोप लगाते हुए बहुतेरे हमले किए गए और साथ ही, इस दौरान राहत सामग्री बांटने वाले स्वयंसेवकों को भी नहीं बख्शा गया.

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